मध्य प्रदेश का इतिहास
प्रागैतिहासिक
प्राचीन
मध्य
आधुनिक
इस काल में मनुष्य ने पत्थरों के उपकरण, औजार
निर्मित किए और वह खाना बदोश जिन्दगी गुजारता रहा। इसे पाषाणकाल के नाम से भी
जाना जाता है।, लेकिन ताम्रपाषाण काल भी प्रागैतिहासिक के अन्तर्गत
गिना जाता है, इस काल में पाषाण के साथ-साथ तांबा धातु का भी
उपयोग मानव करने लगा था। इसलिए प्रागैतिहसिक काल को दो भागों में बांटा जाता है –
पाषाण काल और ताम्रपाषाण काल।
1. पाषाण काल (40 लाख ई.पू. से 4000 ई.पू. तक) – मध्य
प्रदेश पाषाणकालीन मानव विचरता था, इसके साक्ष्य
यहाँ पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं।
पूर्व पाषाण काल में आदमी के पास बिना बेंट के औजार थे। जिनमें हस्तकुठार प्रमुख
था। मध्यपाषाण काल से औजारों का आकार छोटा होना शुरू हुआ। नर्मदा, बेतवा, नर्मदा, आदि घाटियों
में ऐसे औजार बहुतायत में मिले। हैं तव पाषाण युग भारत की तरह मध्य प्रदेश में भी
लगभग 7000 ई.पू. के आसपास शुरू हुआ। सेल्ट, कुल्हाड़ी,
बसुला, रचक, घन जैसे
औजार मिले हैं। मनुष्य ने इसी काल में कृषि, पशुपालन,
गृह, निर्माण और अग्नि प्रयोग जैसे
क्रांतिकारी कार्यों को अपनाया। एरण, गढी-मोरेला, कुण्डम, जतकारा, बहुलई,
बुसीगा, मुनई, अर्तुजी,
जबलपुर, दमोह, नाँदगांव,
हटा, होशंगाबाद इस युग के साक्ष्य प्रदान
करते है।
प्रागैतिहासिक स्थल
आदमगढ:-
यह मध्यपाषाणकालीन है। नर्मदा नदी के तट पर होशंगाबाद जिले में स्थित आदमगढ़ प्रागैतिहासिक
मानव की क्रीड़ास्थली रहा है। यहाँ की प्रमुख विशेषता हैं, गुफा शैल चित्र, जो प्रागैतिहासिक काल के हैं।
भीम बेटका :- मध्य प्रदेश
के रायसेन जिले में स्थित है। प्रागैतिहासिक मानव की कलात्मक अभिव्यक्ति के साक्ष्य
भोपाल से 40 कि.मी. दूर विंध्य पर्वतों में स्थित भीम बेटका के शैलाश्रय है। भीमबेटका
में ऊंचे-ऊंचे पत्थर के टिलों के मध्य लगभग संख्या 500 गुफाए है।
गुहाचित्र या शैलाश्रय :- भारत
में सबसे अधिक शलाश्रयों की संख्या सर्वाधिक संख्या मध्य प्रदेश में है। प्रमुख
जिले जिनमें चित्रित शिलाश्रय मिले है। होशंगाबाद, सागर,
रीवा, मंदसौर, जबलपुर,
रायगढ़, सीहोर, रायसेन,
ग्वालियर, पूर्वी निमाण, शिवपुरी, छिंन्दवाड़ा छतरपुर, दमोह,
पन्ना तथा नरसिंहपुर आदि आधिकांश गुफा-चित्रों मे लाल सफेद,
काले, नीले एवं पीले रंग का उपयोग किया जाता है।
इसन गुफा चित्रों में पशु-पक्षियों का शिकार, जानवरों की लड़ाई
एवं मानवों का पारस्परिक युद्ध पशुओं की सवारी, गीत,
नृत्य, पूजन मधु संचय तथा घरेलू जीवन संबंधी एवं
उनके दृश्य है।
2. ताम्र
पाषाण काल(2000-900 ई.पू.) :- ताम्र पाषाणकाल में मनुष्य ने
पत्थर क साथ-साथ तांबा धातु का उपयोग शुरू किया। जिसके मालवा नर्मदा घाटी में
वृषभ मूर्तियाँ पर्याप्त मिली है। मालवा और उसके निकट ताम्रपाषाण कालीन कुछ स्थल
विघमान थे। जो इस प्रकार है।
कायथा:-
यह उज्जैन जिले में सिंधु नदी के तट पर
उत्खनन से प्रकाश में आया है। यह ताम्रपाषाणकालीन पहली बस्ती थी जिसका आस्तित्व 2015 ई.पू. से 1380
ई.पू. तक माना जाता है। यहां से कंकण, छैनी और कुल्हाडि़या
तांबा धातु मिली हैं। तांबा और मिट्टी की पशु आकृतियाँ भी यहा से मिली। लाल
मृदभान्डों पर काले रंग के चित्र मौजुद हैं। कायथा वराह मिहिर की जन्म भूमि
है।
एरण :-
एरण अभिलेख के साक्ष्य मध्य प्रदेश के सागर जिले से मिले थे। इसका प्राचीन नाम
ऐरिकिण था। इस ताम्रपाषाण बस्ती का समय 2000 ई.पू. से 700 ई.र्पू. था यहां से
तांबे की कुल्हाडिया, सोने के गोल टुकडे, मिट्टी की पशु आकृतियाँ, काले लाल मृदभान्ड,
चित्रित मृदभाण्ड, ताम्रकाली बस्ती के
प्रमाण आदि प्राप्त हुए है।
नवदाटोली
:- नर्मदा नदी पर महेश्वर(खण्डवा-जिला) में स्थित है। यह ताम्रपाषाणिक
नगर था। इसका आस्तित्व 1660 ई.पू. के मध्य माना जाता है। यहाँ से झोंपड़ीनुमा मिट्टी
के घरों के साक्ष्य मिले हैं। जो आयताकार चौकोर होते थे। यहाँ पर गेंहू, चना, मटर, मसूर आदि की खेती की
जाती थी। यहाँ पर तांबे और पत्थर के औजार के
साथ विदेशियों के प्रवास के साक्ष्य मिले हैं।
अवरा:- मध्य
प्रदेश के मंदसौर जिले के अवरा ग्राम से ताम्रपाषाण से लेकर गुप्तकाल तक की विभिन्न
अवस्थाएं वं संबधित सामाग्री मिली है। यह सथ्यता महेश्वर, नावदाटोली, नागदा आदि ताम्र पाषाण युगीन सथ्यता समकालीन
थी।
डाँगवाला:-
गत शताब्दी के उत्खनन से प्रकाश में आई ताम्रपाषाण बस्ती, जो उज्जैन से 32 कि.मी. दूर स्थित है।
नागदा:- चम्बल
नदी के तट पर उज्जैन जिले में स्थित है। इस ताम्रपाषाण बस्ती से भी मृदभाण्ड और
लघुपाषाण के अस्त्र आदि मिले है।
आजाद नगर(इन्दौर)
:- मूसाखेड़ी आजादनगर बस्ती थी।
खेड़ीनामा(होशंगाबाद) :- 1500
ई.पू. पुरानी ताम्रपाषाणिक बस्ती थी।
अन्य नगर :- मध्य प्रदेश
में महेश्वर, बेसनगर, उज्जैन, शाजापुर, इन्दौर, प. निमाड़,
धार, जबलपुर, भिण्ड में
स्थित 30 से अधिक ताम्रपाषाणकालिक बस्तियों के साक्ष्य मिले है।


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